कुछ तो बोलो ,
यूँ चुपी की चादर ना ओढ़ो....
पहले तुम्हारे नयनों से ,
पढ़ लेते थे हर खाविश तुम्हारी....
पर अब इतने दूर हो,
की नयनों का मिलन होता नहीं। 
अब बस  शब्दों के सहारे हैं…
कुछ तो बोलो ,
यूँ चुपी की चादर ना ओढ़ो...
तुम्हारे साथ बिताये वो सुनहरे पल ,
आज भी मेरी मुस्कुराहटों में शामिल हैं..... 
आत्मा भी तुम्हारी हो चली है,
बस  शब्दों के सहारे हैं…
 कुछ तो बोलो ,
यूँ चुपी की चादर ना ओढ़ो...


दीपेश की कलम से.…

Comments (6)

On November 15, 2015 at 2:14 AM , Unknown said...

चुप रहना उसकी मर्जी नहीं व्यथा है।
अब यही शायद उसके जीवन की कथा है।
ख्वाहिशे रही नहीं,तुम जो चले गए,
पर मिलन आज भी होता,नयन बंद होते ही।
शब्द उसने भी कई गढ़े पर चुप ही रही
कही तेरे शब्दों में छुपे "भाव "फना ना हो जाए।
इसलिए उसने कुछ ना बोला
बस चुप्पी का चादर ओढ़ा।।।।

 
On January 23, 2017 at 11:11 PM , ऋचा said...

Good one...!!

 
On January 23, 2017 at 11:12 PM , ऋचा said...

Good one...!!

 
On January 24, 2017 at 6:01 AM , Deepesh Kumar said...

Thank you.

 
On October 3, 2018 at 12:37 PM , Unknown said...

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On December 28, 2018 at 11:12 AM , Korapolu Nagendra said...

Bahuth achaa