सड़क के ये सन्नाटे,
बहुत कुछ अपने मे समेटे हुए 
ढेर सारा दर्द और कुछ गुस्सा अपने हुक्ममारणों पे   
ये बताते हुए कि
शहर में सब ठीक नहीं    
सुना  है  कुछ  राज्य  भक्तो  ने ,
जला  दिए कल  सपने  कई  गरीबों  के 
सच  हे  कि  गरीब  ही सताते  हैं  गरीब  को ,
अमीर तो  बस  तमाशबीन  हैं  ये  कहते  हुए  की
शहर   में  सब  ठीक  नहीं ..
सड़क  के  ये  सन्नाटे  बहुत  कुछ  समेटे  हैं  अपनेआप  में ,
शायद आने   वाली  रात  की  व्यवाह  तस्वीरें 
पर  शहर  की  फ़िक्र  किसे  हे
नेता  मस्त  हैं , जनता  त्रस्त  हे 
और ईश्वर स्तब्ध हें !


दीपेश की कलम से 

Comments (2)

On April 27, 2021 at 7:14 PM , Deepesh Kumar said...

aaj bahut dino baad fir se javita kee duniya main wapsi hue hai. Ummed kerta hoon achi lagegi

 
On May 2, 2021 at 6:53 PM , Minaxi said...

Nice poem 👌