कभी तुम शब्दोँ में छिपे भाव नहीं समझ पाती,

कभी मैं भावों को शब्दों में सज़ा नहीं पाता..

पर हर बार हारता तो मैं ही हूँ ,

तुम अपनापन जताती नहीं..

मैं परायापन स्वीकारता नहीं...

कभी तुम ख्वाबों में नींद सज़ा जाती ,

कभी मैं ख़वाब ही नहीं सजा पाता..

पर हर बार दिल तो मेरा ही  टूटता है ,

तुम अपनापन जताती नहीं..

मैं परायापन स्वीकारता नहीं..

कभी तुम मुस्कान के कमल खिला जाती,

कभी मैं मुस्कुराना भूल जाता हूँ..

पर हर बार नए सपने तो मैं ही बुनता हूँ,

तुम अपनापन जताती नहीं..

मैं परायापन स्वीकारता नहीं ..



दीपेश की कलम से

Comments (4)

On December 24, 2013 at 10:20 AM , Deepesh Kumar said...

Kuch dino baad waapsi hue hai kavita kee duniya main,,, Is baar apni vidya se hat ke likha hoon..naya prayog hai.. sayad aapko pasand aaye..

Please do share your thoughts..

Deepesh

 
On December 24, 2013 at 10:44 AM , Unknown said...

Good One Yaara :)

 
On December 24, 2013 at 10:49 AM , Rajeev Kumar Ranjan said...

Badhiya prayog..."har baar dil to mera hi tootata hai, har baar haarta to main hi hu"

 
On December 28, 2018 at 11:15 AM , Korapolu Nagendra said...

Wish you win sometime too :-))