स्तब्ध हूँ...
तुम्हारे शब्दों  के सूखे पे ..
तो कभी दम तोडती रिश्तों के छलावों  पे ...
अभी तो,
कोपलें ही  फूटी  थी..
फिर कैसे फुफंद लग गए जड़ों में ..

स्तब्ध हूँ .....
तुम्हारे मौन पे ..
तो कभी झूठी खोखली हंसी पे ..

अभी तो,
प्यार वाली मेहँदी भी नहीं सूखी है ..
फिर क्यूँ विधवा विलाप की तैयारी है ..
स्तब्ध हूँ..

तुमसे जुडी मेरी आस्थाओं पे
............


दीपेश की कलम से…

Comments (1)

On August 18, 2013 at 11:03 PM , Subhash ki kavitaayen said...

very sensible and nice to read it