क्या मैं भी आदि हो जाने की आदत डाल लूँ ?
अपने देश को बीच भँवर में छोर ,
मुर्दों की तरह जीना सिख लूँ ..?
सत्यमेव जयते को भूल ,
असत्य वाले पगडण्डी पे चल दूं ?
शर्मिंदा कर गुरुजनों के आशीष को ,
अपना लूँ कांग्रेसी वाले सीख को ?
भूल कर अपनों के उपकारों को ,
खो जाउँ नये नवेलों सपनों के जी हुजूरी में ?
कर कलंकित मधुवन की छाती को ,
भूल जाउँ मनु के प्रयासों को ?
अपने कुछ खवाबों को बेच के ,
क्या खरीद लाऊँ कुछ बिकने वाली खुशियों को ?
माना पथरीले हैं रास्ते ,
पर क्या उनसे हार मान के ?
क्या मैं भी आदि हो जाने की आदत डाल लूँ ?
ये जानते हुए भी ,
की सुगम रास्तों की अहमियत क्या है ?
दीपेश की कलम से ......!
Sunday, September 09, 2012 |
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वक़्त बदला ..शहर बदले..
पर नहीं बदली तो यादें हैं..
किसी की मुस्कान का जरिया बन ,
दिल आज भी नम हो जाता है ..
नहीं बदली तो संस्कारें हैं..
वक़्त बदला ..शहर बदले..
जीवन शैली बदली
पर नहीं बदली तो जीवन की रेखायें हैं ..
वो कल भी टेढ़ी मेढ़ी थी
और आज भी उलझी हैं
वक़्त बदला ..शहर बदले..
दोस्तों के नाम बदले
पर नहीं बदली तो दोस्ती हैं ..
वक़्त बदला ..शहर बदले
सरकारें बदल गयी
पर नहीं बदली तो आम जनों की बदहाली है
भारत माँ के आँखों में आज भी आँसूं हैं..
वक़्त बदला ..शहर बदले
दीपेश की कलम से..
Tuesday, May 22, 2012 |
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काश कि इन् पलों का कभी कल ना आये..
यादों की आज में ही ये जीवन गुजर जाये ..
बंद कभी ना हों ये हँसी की कहकहे ,
ना कभी खत्म हो इन् आँसुओं की अहमियत ..
कल कुछ आत्म्जन बिछुर जायेंगे ..
पथ की यादें मुझे तरसायेंगे..
जीवन तो राहें ढूँढ ही लेगी ..
पर क्या हमारी हँसी भी हमहें ढूँढ पाएंगी ..
साथ तो बस सुनहरी यादें ही रह जायेंगी !काश कि इन् पलों का कभी कल ना आये..
यादों की आज में ही ये जीवन गुजर जाये ..
दीपेश की कलम से...
Monday, May 07, 2012 |
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आशाओं की बदरी तो आयी ,
सपनों ने उम्मीदों को दस्तक भी दी ,
नयनों ने आँसूं भी बरसाए ,
पर फिर भी नहीं बरसी उम्मीदें...
हजार नेतागण आये ,
साथ सपनों की फौज लाये ,
आम आदमी को बहलाए - फुसलाये
पर फिर भी नहीं बरसी उम्मीदें...
मुरझाई शहीदों की शहादत ,
फीकी पड़ती आजादी की रँगत,
देश मना चुका बासठ गणतंत्र है ..
पर फिर भी नहीं बरसी उम्मीदें...
हर एक अपनी राग अलाप रहा ,
कोई मुसलमानों को , कोई हिन्दुओं को रीझा रहा ,
अगड़ा भारत - पिछड़ा भारत एक दुसरे से दूर जा रहे ,
ऐसे मैं कैसे बरसेंगी उम्मीदें...
शुक्र है खुदा का ,
की नहीं बरसी उम्मीदें ...
दीपेश की कलम से..
Saturday, January 28, 2012 |
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बरसेंगी उम्मीदें .. ?
या सो जायेंगे सपने सदा के लिए..
आकाश के ओर टिकी हैं निगाहें...
क्या फिर से बरसेंगी जीवन वाली बूँदें .. ?
या हमेशा के तरह बरसेंगे आकाश से अंगारे
जो जला देंगी मधुवन में जन्मे नन्ही कोपलों को ..
कोपलें तो फिर से फूटेंगी ..
पर जमीन में दफ़न उन सपनों का क्या होगा ...
क्या उनके हिस्से सिर्फ इतिहास होगा ,
या मिलेगी कुछ जमीन...
सीचेंगी वसुंधरा फिर से इनको ,
फिर से उठ खरे होंगे ये सपने ..
फिर से बरसेंगी उम्मीदें ...
.
.. दीपेश की कलम से.. !
Saturday, January 07, 2012 |
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