हम कहीं मंदिर बना बैठे तो कहीं मस्जिद
कहीं शमशान बना बैठे तो कहीं कब्रगाह
हमसे अच्छे तो ये परिंदे हैं ..
जो कभी इस गली बैठे तो कभी उस गली
ना काशी की फ़िक्र ना काबुल की
ना अंतिम पराव पे
अग्नि में जलने की चिंता
ना कब्र में दफ़न होने की चिंता...
हमसे अच्छे तो ये परिंदे हैं .... .!
लेखक : दीपेश कुमार
Monday, March 29, 2010 |
Category: |
9
comments
Comments (9)
its better to be a good poet than bad engg!!!
hehehehe..rightly said dear :)
and its even better if are good at both ...waise nicesly written
हम से अच्छे ये परिंदे हैं ;
हर दिन एक नयी जिंदगी नयी उमंग ;
ना कल की चिंता ना बीते पल का दुख ;
हर दिन एक नयी सुरुयात होती हैं;
मुझे भी एक ऐसी जिंदगी की चाहत ;
जहाँ हर जगह हो प्यार ओर मोहबात ;
nice one,,,keep it up
bahut achha deepesh...
u have depth in ur words...
keep writing... :)
Thanks janab :) kuch sapne humain bhi bechiye...! sapnoo kaa saudagar hoon main :)
damn gud!
heart melting poem ...no words