ज़माने ने ऐसा छला
है भावनाओं को
कि टूट गयी है
कमर आस्थाओं की..
ज़माने ने ऐसा छला है ....
अधर्म की कुछ चली है
ऐसी लहर
कि
डूबती जा रही है
किश्ती मानवता की
हे मनुपुत्र..
बचा लो किश्ती
इस
मानव की
दिला
दो इसे स्वर्गगति....!!


लेखक : दीपेश कुमार ` जननायक `

ना जाने क्यूँ...
कलयुग की इस सदी में
सत्य हमेशा हार जाता है
ना जाने क्यूँ...
आज की सदी में
जो जितना ही ऊँचा
वो उतना ही अकेला
मुख पर दिखावटी मुस्कान बनाये
मन ही मन वह रोता
यह सोच आज में चुप हूँ
ना जाने क्यूँ...
इस उपवन में
हमेशा झूठ का ही जयकारा है ....!

लेखक :
दीपेश कुमार

अक्शर सोचा करता हूँ ..
पथ के साथी
क्यूँ
गुम हो जाते हैं
अतीत के आएने में..

अक्शर सोचा करता हूँ..
स्मृति की रेखाएं
क्यूँ
सिकुर जाती हैं
आशिया नया बनाने में...

अक्शर सोचा करता हूँ.
जीवन की हरियाली
क्यूँ
मुरझा जाती है
जीवन पथ पे ...!


लेखक :
दीपेश कुमार

अपनी हाथ की रेखाओं को
हमेशा
झुतालाता रहा हूँ मैं
कभी जीत को तो
कभी हार को
गले लगाता रहा
हूँ मैं
हर
हार को
जी
में बदलना जानता हूँ मैं
तकदीर
से भी आगे जाने
की
तमन्ना रखता हूँ मैं..!!!


लेखक :-
दीपेश कुमार





यादों की अमिट तस्वीर ,
जब जब मानस पटल पर उभरेगी ..
स्मृतियों के बादल से..
तब तब हँसी और
आँसों रुपी फुहारें बरसेंगी.....
!!



लेखक :
दीपेश कुमार