उम्मीदें भी बड़ी अजीब होती हैं ...
कभी सपनों के करीब ,
तो कभी उनसे कोसों दूर होती हैं...
कभी नाकामियों को याद दिलाती ,
तो कभी ख्वाहिशों को पंख लगाती हैं ..
उम्मीदें भी बड़ी अजीब होती हैं...
कभी अंधेरों में जुगनू की तरह राह दिखाती ,
तो कभी घनी दुपहरी में बादलों का घेरा लगाती हैं ..
कभी नव-सृजन को अंकित करती ,
तो कभी सृष्टि-विनाश का सूचक बनती हैं ...
उम्मीदें भी बड़ी अजीब होती हैं ....
दीपेश की कलम से....... !
Saturday, December 03, 2011 |
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जब भी नजरें फिराता हूँ , बचपन की तस्वीरों पे
सहसा , आँखों में आँसूं आ ही जाते हैं ..!
कितने हसीन दिन थे वो ,
आँखों में बस सच्चाई ही बसती थी .. !
पल में रोना , पल में हँसना पर गिले शिकवों का नामो-निशान ना होना ...!
आज खेल - खेल में हुई लड़ाई ,
पर कल फिर वही गले-लगाई...!
वो बारिश की बूंदों का हथेली पे सिमटना , कागज़ के नावों का उलटना - पलटना ..!
वो घुटनों का छिलना,पर हाँ - ना के भँवर से दिल का ना दुखना ..!वो खीलौनो का टूटना - फूटना ,
पर सपनों का रोज सजना - सवरना...! वो बचपन की तस्वीर का फिर से उभरना ,
आँसुओं का आना जाना , फिर से बचपन का ताना - बाना .. !
आँखों में आँसू , मुख पे हँसी लिए
ऑफिस को जाना , लुट चुकी बचपन के ख्वाबें सजाना ...!
वो बचपन की तस्वीर का फिर से उभरना ,
आँसुओं का आना जाना , फिर से बचपन का ताना - बाना .. !दीपेश की कलम से....... !
Monday, March 28, 2011 |
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स्वजनों की भारी भीड़ है बाजार में ,पर उनमें अपनों की परछाई दिखाई नहीं पड़ती...सपनों की समाधियों पर हरियाली है ,पर माली में उनको सीचनें की ललक दिखाई नहीं पड़ती...गरीबों की आँखों में खुनी आंसूँ हैं ,पर नक्सलियों में उन्हें सहेजने की आशा दिखाई नहीं पड़ती...बेमौत मर रहे हैं सिपाही आतंक के मैदान में ,पर इन सुशासन के दलालों में उनकी शहादत दिखाई नहीं पड़ती...युवा भारत की उमंगों में लग रही है फुफंद ,पर सिमटते विकास दायरे की गूंज इन्हें विचलित करती दिखाई नहीं पड़ती ...कसाब की फाँसी की फाँस इन्हें रुलाती है ,पर शहीदों की मुरझाती शहादत इन्हें दिखाई नहीं पड़ती...!!
दीपेश की कलम से...!
Tuesday, March 01, 2011 |
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