बहुत कुछ अपने मे समेटे हुए
ढेर सारा दर्द और कुछ गुस्सा अपने हुक्ममारणों पे
ये बताते हुए कि
शहर में सब ठीक नहीं
सुना है कुछ राज्य भक्तो ने ,
जला दिए कल सपने कई गरीबों के
सच हे कि गरीब ही सताते हैं गरीब को ,
अमीर तो बस तमाशबीन हैं ये कहते हुए की
शहर में सब ठीक नहीं ..
सड़क के ये सन्नाटे बहुत कुछ समेटे हैं अपनेआप में ,
शायद आने वाली रात की व्यवाह तस्वीरें
पर शहर की फ़िक्र किसे हे
नेता मस्त हैं , जनता त्रस्त हे
और ईश्वर स्तब्ध हें !
दीपेश की कलम से
Tuesday, April 27, 2021 |
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