आशाओं की बदरी तो आयी ,
सपनों ने उम्मीदों को दस्तक भी दी ,
नयनों ने आँसूं भी बरसाए ,
पर फिर भी नहीं बरसी उम्मीदें...
हजार नेतागण आये ,
साथ सपनों की फौज लाये ,
आम आदमी को बहलाए - फुसलाये
पर फिर भी नहीं बरसी उम्मीदें...
मुरझाई शहीदों की शहादत ,
फीकी पड़ती आजादी की रँगत,
देश मना चुका बासठ गणतंत्र है ..
पर फिर भी नहीं बरसी उम्मीदें...
हर एक अपनी राग अलाप रहा ,
कोई मुसलमानों को , कोई हिन्दुओं को रीझा रहा ,
अगड़ा भारत - पिछड़ा भारत एक दुसरे से दूर जा रहे ,
ऐसे मैं कैसे बरसेंगी उम्मीदें...
शुक्र है खुदा का ,
की नहीं बरसी उम्मीदें ...
दीपेश की कलम से..
सपनों ने उम्मीदों को दस्तक भी दी ,
नयनों ने आँसूं भी बरसाए ,
पर फिर भी नहीं बरसी उम्मीदें...
हजार नेतागण आये ,
साथ सपनों की फौज लाये ,
आम आदमी को बहलाए - फुसलाये
पर फिर भी नहीं बरसी उम्मीदें...
मुरझाई शहीदों की शहादत ,
फीकी पड़ती आजादी की रँगत,
देश मना चुका बासठ गणतंत्र है ..
पर फिर भी नहीं बरसी उम्मीदें...
हर एक अपनी राग अलाप रहा ,
कोई मुसलमानों को , कोई हिन्दुओं को रीझा रहा ,
अगड़ा भारत - पिछड़ा भारत एक दुसरे से दूर जा रहे ,
ऐसे मैं कैसे बरसेंगी उम्मीदें...
शुक्र है खुदा का ,
की नहीं बरसी उम्मीदें ...
दीपेश की कलम से..
Saturday, January 28, 2012 |
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