सपनोँ ने  कुछ आँख मिचोली खेली,
मित्रों की कुछ हँसी ठिठोली ...
कुछ अँधेरों के बादल आए ,
संग  कुछ आँसू की बूँदें लाये ..
कुछ स्वजनों ने निकाल ली तलवारें ,
थोडा डराए धमकाए ..
अपनी असली तस्वीर दिखाए ,
तभी उजालों ने दस्तक दी ,
और उतर गयी उनकी सारी नकाबें ..
अब किस मुँह से बहलआयें फुसलाये ,
टूट गयी वो चाहत की दीवारायें ..
अब तो बस खिलती है दिखावटी मुस्कानें ....!


दीपेश की कलम से।