उम्मीदें भी बड़ी अजीब होती हैं ...
कभी सपनों के करीब ,
तो कभी उनसे कोसों दूर होती हैं...
कभी नाकामियों को याद दिलाती ,
तो कभी ख्वाहिशों को पंख लगाती हैं ..
उम्मीदें भी बड़ी अजीब होती हैं...
कभी अंधेरों में जुगनू की तरह राह दिखाती ,
तो कभी घनी दुपहरी में बादलों का घेरा लगाती हैं ..
कभी नव-सृजन को अंकित करती ,
तो कभी सृष्टि-विनाश का सूचक बनती हैं ...
उम्मीदें भी बड़ी अजीब होती हैं ....
दीपेश की कलम से....... !
Saturday, December 03, 2011 |
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